एक चेहरे से दिल लगाया गुनहगार हो गए,
अपने ही क़ातिल के मददगार हो गए,
सुकून-ए-हसरत से सजाई थी महफिल-ए-शमा,
चैन से सोने के भी तलबगार हो गए।
वो करते रहे सितम पे सितम,
हम खुद के दुश्मन बार - बार हो गए,
सोचा था इश्क़ के दरियाँ को पार कर जाएंगे,
बीच भँवर में अरमान तार - तार हो गए।
कुछ ना मिला बस इतना पाया,
पहले कुछ काम के थे अब बेकार हो गए।
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