Wednesday, January 30, 2019

अफ़साना बना के रोये

कभी अफ़साना बना के रोये,
कभी फलसफ़ा लिख के रोये,
एक मोहब्बत क्या की,
कभी रुला के रोये
तो कभी हंसा के रोये।
जितनी जुस्तजू करके रोये,
उतनी तिष्नगी पा के रोये,
कभी खुद पे रोये,
कभी गैरों पे रोये,
एक मोहब्बत के खातिर,
कब्र के बाहर भी रोये,
कब्र के अंदर भी रोये।

No comments:

Post a Comment