आ जाओ हम तुम आज मिलकर,
ख़ूबसूरत सा एहसास जगाएें,
रिश्तों के बंधनों से बहुत दूर,
एक रिश्ता हम बेनाम सा जी जाएें....
जिसमें एहसास मेरे हों,
और एहसास तुम्हारे भी हों,
ज़माना मिसाल दे ना दे,
लेकिन खुशियां ज़िन्दगी में आएें,
हक़ मुझ पर जताओ तुम,
मैं तुमको पा जाऊं,
मेरा दिल कोई सौदागर तो नहीं,
जो लेन देन पर टिक जाए....
आशियाना आओ एक ऐसा बना लें,
अपनी ज़िन्दगी उसमें हम बिताएं,
बुरी परछाई अतीत की न हो जहाँ,
कोहरे ज़रा भी हमको न घेर पाएँ,
रिश्तों के एक नये साँचे को,
हम तुम मिलकर बनाएं,
बाहों में आकर तुम तपिश कुछ ऐसी दो फिर से,
नया आकार हमारे जिस्मों में आ जाएँ,
आ जाओ हम तुम आज मिलकर,
ख़ूबसूरत सा एहसास जगाएें,
रिश्तों के बंधनों से बहुत दूर,
एक रिश्ता हम बेनाम सा जी जाएें....
.......समर्पित
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