वो
दिसम्बर का आखिरी सप्ताह था और शनिवार की शाम थी । समीर शहर के बीचो – बीच बनी एक नहर के किनारे
खड़ा, बहते हुए पानी को निहार
रहा था । सूरज ढल चुका था, चाँद बिल्कुल हल्की सी रौशनी बिखेर रहा था । सब
धुंधला सा हो चला था, दूर – दूर तक सन्नाटा था । दूर
सड़क से गुज़रने वाली गाड़ियों की आवाजें सन्नाटे में बहुत तेज़ सुनाई पड़ती थी । कभी – कभार कोई पास से गुज़र
जाता था । ऑफिस से निकलने के बाद वो अक्सर यहीं आ जाता था । अपने घर से दूर वो इस
शहर में नौकरी करने आया था, अच्छा खासा वक़्त गुज़र चुका था, लेकिन उसका दिल नही लगता
था, अब तक कोई दोस्त भी नहीं
बन सका था । ठंडी हवा चलने लगी थी जो उसके कानों में सरसराहट पैदा कर रही थी ।
साढ़े सात से ज़्यादा हो चला था, और वो अपने फ्लैट की तरफ़ निकलने ही वाला था कि अचानक
उसे एक साया आता दिखा । वो कुछ पल रुका, तो वो साया उससे कुछ क़दम के फ़ासले पर रुक गया । समीर
ने उसकी तरफ़ गौर से देखा ।
वो एक लड़की थी, चाँद की हल्की सी रौशनी
में उसका एक तरफ़ का चेहरा समीर को नज़र आ रहा था । लड़की ख़ामोश सी आकर खड़ी हो गई थी
। एक - दो बार उसने भी समीर की तरफ़ देखा लेकिन कुछ बोला नहीं । `उसके चेहरे के भावों से
समीर को लगा कि, “शायद वो किसी बड़ी परेशानी
में है ।” उसने उस लड़की के पास जाकर
उससे पूछ लिया, “क्या आप किसी परेशानी में
हैं ?” लड़की ने उसे कोई जवाब
नहीं दिया और सामने जाने वाले रास्ते की तरफ़ देखने लगी । समीर ने कुछ देर बाद फिर
से उससे पूछा, “क्या आपको कोई परेशानी है
?” लड़की ने उसकी तरफ़ देखा और
कुछ देर ख़ामोश.... रहने के बाद बोली, “मैं यहाँ किसी से मिलने आई थी, लेकिन जिनसे मिलना था, वो मिलने नही आए । और मैं
उनसे मिलने के लिए इतनी दूर चली आई हूँ । मुझे कुछ समझ नही आ रहा है कि मैं क्या
करूँ ?” मुझे कुछ भी सूझ नही रहा
कि, “मैं यहाँ इसी शहर में रुक
कर उनका इंतज़ार करूँ ? या फिर वापस अपने घर चली
जाऊं ?”
समीर ने उससे पूछा, “आपका नाम क्या है और
किससे मिलने आई थी आप यहाँ?” लड़की बोली, “मेरा नाम बरखा है, और मैं हिमांचल से आई हूँ, मैं यहाँ अपने किसी ख़ास
से मिलने आई थी, लेकिन वो आए ही नहीं, और न ही उनकी कोई ख़बर है
। अब तो उनका फ़ोन भी नही लग रहा है । और मैं यहाँ किसी को जानती भी नही....., घूमते – फिरते यहाँ तक आ गई हूँ ।
उलझन में हूँ.... कि, क्या करूँ ? और डर भी लग रहा है कि अब
क्या होगा आगे ?” समीर ने कहा, “क्या मैं आपकी कुछ मदद कर
सकता हूँ ?” बरखा ने कुछ भी नहीं बोला, बस चुप खड़ी रही । समीर ने
फिर कहा उससे, “देखिये आप ज़्यादा परेशान
न हो, मैं आपकी हेल्प कर दूंगा
अगर आप कहें तो ।” बरखा ने कुछ देर चुप.....
रहने के बाद कहा, “अगर आप मुझे बस स्टैंड तक
छोड़ देंगे तो मेरे लिए अच्छा होगा, बस आप इतनी मदद कर दीजिए ।” समीर ने कहा ठीक है मैं
आपको बस स्टैंड तक छोड़ देता हूँ । फिर वो उसे लेकर बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा ।
बस आधे घंटे में वो दोनों ऑटो से बस स्टैंड पहुँच गए । समीर ने बरखा से कुछ
खाने – पीने के लिए पूंछा तो
उसने मना कर दिया । फिर भी वो जाकर २ कॉफ़ी और समोसे ले आया । समीर ने उससे कुछ और
खाने के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया । फिर उसने पूछा कि, “अब तुम क्या करोगी ? कैसे जाओगी ? कहाँ जाओगी ?” तो बरखा ने बड़े बुझे
स्वर में जवाब दिया, “अब यहाँ तो कुछ बचा नही
है, सोच रही हूँ, वापस चली जाऊं ।” समीर उसकी बात सुनकर कुछ
पल ख़ामोश...... रहा । फिर उसने पूछा, “क्या मैं तुम्हारी कोई और मदद कर सकता हूँ ?” बरखा ने कहा, “नहीं!... बस इतना बहुत है, तुम अब अपने घर चले जाओ, बहुत देर हो चुकी है । पर
न जाने क्यों, समीर का वहां से जाने का
मन नही हो रहा था, वो उसे अकेला छोड़ कर जाना
नही चाहता था ।” लेकिन जब दोबारा बरखा ने
उससे कहा तो वो उठ गया और उसने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा, “अगर कोई प्रॉब्लम आए या
कोई भी ज़रूरत हो तो मुझे तुरंत कॉल करना, मैं आ जाऊंगा ।” और फिर वो बेमन से अपने
रास्ते चल पड़ा, उसने कई बार पलट कर देखा, बरखा अभी भी अपनी जगह पर
बैठी हुई थी ।
थोड़ी ही देर में वो अपने फ्लैट पहुँच गया । अपना
सामान इधर - उधर फेंकने के बाद सीधा बाथरूम में घुस गया और हाथ – पाँव धोकर वो बेड पर लेट
गया । आँखे बंद करके बरखा के बारे में सोचने लगा । अभी 15 मिनट ही गुज़रे थे कि
उसका फ़ोन बजने लगा, उसने फ़ोन उठा कर हैलो
किया, लेकिन उस तरफ़ से कोई आवाज़
नहीं आई । समीर ने दो – तीन बार हैलो किया, लेकिन कोई आवाज़ सुनाई नही
दी और फ़ोन कट गया । समीर ने उस नंबर पर वापस कॉल की लेकिन फ़ोन उठा नहीं, और बाद में तो फ़ोन मिलना
ही बंद हो गया । समीर तुरंत उठा और बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा । देर रात हो चुकी थी
तो कोई साधन नहीं मिल रहा था, वो तेज़ी से पैदल चलने लगा । वो बस स्टैंड जल्दी पंहुचने के लिए इतनी तेज़ी से चल रहा था कि उस
ठन्डे मौसम में भी उसे पसीना आने लगा था ।
थोड़ी ही देर में वो बस स्टैंड पंहुच गया, लेकिन उसे वहां बरखा नही
मिली, उसने यहाँ – वहां, इधर – उधर बहुत ढूंढा, हर तरफ़ नज़र दौड़ाई लेकिन
बरखा उसे कहीं नज़र नहीं आई । वो भाग कर पूछताछ कार्यालय पहुंचा, उसने पता किया कि, “हिमांचल जाने के लिए कोई
बस निकली है क्या अभी पिछले एक घंटे में ? ” जवाब मिला, “नहीं, हिमांचल की ओर जाने वाली
वाली बस रात साढ़े बारह बजे निकलेगी ।” ये सुनते ही समीर के मन में कई सवाल उठने लगे, आखिर बरखा कहाँ चली गई ? जबकि हिमांचल के लिए कोई
बस निकली ही नही, कोई परेशानी तो नहीं हो
गई उसे ? मुझे फ़ोन किसने किया था ? कहीं वो बरखा ही तो नहीं
थी ? और अगर फ़ोन किया तो काट
क्यों दिया ? और फिर अब फ़ोन लग क्यों
नहीं रहा है ? वो किसी गंभीर समस्या में
तो नहीं फंस गई ? इन्हीं सब सवालों की उलझन
में वो बस स्टैंड में इधर – उधर टहलने लगा । उसका वापस लौटने का मन नही हो रहा था, वो उस ठंडी रात में पौने
बारह बजे बस स्टैंड में उस अनजान लड़की के लिए परेशान सा भटकने लगा । स्टैंड के
चारो ओर उसने दो - तीन चक्कर लगा लिए लेकिन उसे बरखा कहीं नहीं दिखी । थक कर वो एक
बेंच पर जाकर बैठ गया ।
जब हिमांचल जाने वाली बस आकर खड़ी हुई तो समीर भी वहां
आकर खड़ा हो गया, धीरे – धीरे सभी यात्री बस में
चढ़ गए लेकिन उनमें बरखा नहीं थी । वो एक बार तो बस के अन्दर भी हो आया कि शायद
उसकी नज़रों से बचकर बरखा बस में न चढ़ गई हो । कुछ देर बाद वो बस भी चली गई लेकिन
अब तक समीर को बरखा के बारे में कुछ भी पता नहीं चला था । वो एकदम उदास हो गया और
वहीँ ज़मीन पर बैठ गया । ऐसा लग रहा था जैसे कोई सुध - बुध न हो । वो वहां रात 3
बजे तक बैठा रहा, और इस बीच एक – दो लोगों ने उससे पूछा भी
कि, “यहाँ क्यों बैठे हो ?” लेकिन उसने कोई जवाब नहीं
दिया बस वहीँ बैठा रहा, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका कोई कीमती सामान लुट
गया हो । वो बार – बार यही सोच रहा कि काश
उसे कहीं से भी बरखा के बारे में कोई ख़बर मिल जाए । आख़िरकार उसे जब ये लगा कि अब
बरखा के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाएगी तो वो एकदम टूटे हुए मन से वापस
लौटने लगा । जाते वक़्त जितना तेज़ी से चल रहा था, आते वक़्त वो उतना ही धीमे
– धीमे क़दम उठा रहा था ।
आकर वो सीधा अपने बेड पर लेट गया और पता नहीं चला कब सो गया ।
सुबह जब उसकी आँख खुली 10 बज चुके थे, सर भारी सा था, उसने एक नज़र अपने मोबाइल
पर डाली तो उसमे कोई कॉल या मैसेज नहीं था । वो बेमन से उठा और पिछली रात की बातों
को सोचने लगा । उसे लगा कि अगर वो ज़्यादा उन बातों को सोचेगा तो वो परेशान रहेगा, इससे बेहतर है कि वो
किसी काम में मन लगाए, ये सोचकर वो अपने कामों
में जुट गया । जब शाम हुई तो न चाहते हुए भी उसके क़दम बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़े, वहाँ पहुँच उसने बस
स्टैंड का पूरा चक्कर लगाया और आकर चाय की दुकान में बैठ गया । दिमाग में पिछली
रात की उलझनों को लिए उसने दो – तीन चाय पी डाली । कुछ समझ नहीं आया तो वो वापस अपने
फ्लैट पर लौट आया । आकर उसने अपने खाने – पीने का इंतजाम शुरू कर दिया । लेकिन उसके मन में रह – रह कर उसे बरखा का ख्याल
आ रहा था । रात दस बजे उसने डिनर लिया और
जाकर लेट गया लेकिन काफी वक़्त तक उसे नींद नहीं आई । करवटें बदलते – बदलते वो कब सो गया उसे
कुछ पता ही नहीं चला ।
अगले दिन वो समय पर उठा और रैडी होकर अपने ऑफिस चला
गया । दिन भर उसने काम किया और शाम को फिर से वो उसी नहर के किनारे पहुँच गया और
बरखा के बारे में सोचने लगा । उसके मन में ये कल्पना आने लगी कि शायद उसे बरखा मिल
जाए । दो घंटे वहाँ गुज़ारने के बाद वो
अपने फ्लैट की तरफ़ चल पड़ा । रात 9 बजे जब वो अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था, तभी उसका फ़ोन बजा उसने
फ़ोन उठाया और हैलो किया, लेकिन उस तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं आई और फ़ोन कट गया ।
उसने उस नंबर पर कॉल बैक किया लेकिन फ़ोन फिर भी उठा नहीं, उसने दो – तीन बार फ़ोन किया लेकिन
किसी ने भी फ़ोन नहीं उठाया । वो नंबर भी नया था और उस नंबर से बिल्कुल अलग था जिस
नंबर से उसके पास पहले फ़ोन आया था । वो फिर से एक बार परेशान हो गया कि आखिर कौन
है...? जो उसके साथ ये मज़ाक कर
रहा है, आख़िर वो बात क्यों नहीं
कर रहा है......? क्या चाहता है वो....? वो जो भी है.... उसे
मुझसे बात करनी चाहिए । इतने सारे सवाल वो मन में लेकर बाहर निकल आया ।
रात काफी ठंडी थी, फिर भी वो बिना परवाह किए
सिर्फ एक जैकेट पहने बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा । वहाँ पहुँच कर उसने बस स्टैंड का
पूरा एक चक्कर लगाया और चाय की दुकान पर आकर चाय पीने लगा । लगभग एक घंटा वहाँ
गुज़ारने के बाद वो अपने फ्लैट में वापस आ गया । आज तो उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग
रहा था, उसका कुछ भी खाने – पीने का मन नहीं कर रहा
था । वो बिना कुछ खाए – पिए ही सो गया । अगले दिन वो अपने काम पर चला गया
लेकिन उसके मन में उलझनें बढ़ती ही जा रही थीं । वो दिन में लंच के समय में जब बाहर
खड़ा था तभी उसके फ़ोन पर एक कॉल आई, लेकिन पिछली बार की तरह फिर किसी ने बात नहीं की । अब
उसके मन में ये ख़याल आने लगा था कि कहीं वो बरखा ही तो नहीं जो बार – बार उसको कॉल कर रही है ।
उसे बार – बार वो धुंधली सी शाम याद
आ रही थी, जब वो बरखा नाम की लड़की
उसे मिली थी । समीर न जाने क्यों उस अनजान लड़की के ख़्यालों में डूबता ही जा रहा था
। पता नहीं उसे क्या हो गया था कि वो बार – बार बरखा के बारे में
सोचने लगा था ।
ये सिलसिला बहुत दिनों तक चलता रहा, उसके फ़ोन पर कॉल आती थी, लेकिन कोई बात नहीं करता
था, और जब वो कॉल करता था तो
कोई उठाता भी नहीं था । फिर उसने भी अपना ध्यान वहाँ से कम करना शुरू कर दिया और
उस धुंधली शाम को अपनी सुनहरी यादों की तरह संजो लिया । जब भी वो उस नहर के किनारे
जाकर खड़ा होता, उस धुंधली शाम के बारे
में सोचता और ख़ुश हो लिया करता कि, “किस तरह से एक अनजान लड़की उसको मिली और अपने पीछे ढेर
साड़ी यादें छोड़ गई और ढेर सारे.... सवाल भी..... । वक़्त गुज़रता रहा महीनों बीत गए
लेकिन उसे आज तक उस धुंधली शाम से जुड़े सवालों के जवाब नहीं मिले थे, वो आज भी उन सवालों के
जवाब पाना चाहता था और उस लड़की से मिलना भी चाहता था ।
एक बार उसे ऑफिस के काम से हिमांचल जाने का मौका मिला, वो इतना ख़ुश हुआ मानो उसे
दुनियाँ भर की ख़ुशी मिल गई । दिल में ढेरों अरमान सजाए वो हिमांचल के लिए निकल पड़ा
। उसके मन में मोहक सा ख्याल आने लगा कि शायद उसे बरखा वहाँ मिल जाए । वहाँ पहुँच
कर वो पहले दिन तो वो अपने ऑफिस का काम निपटाने में लगा रहा । अगले दिन वो घूमने
फिरने निकल गया, पूरा दिन वो शहर में इधर – उधर घूमता रहा । लेकिन
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा उसने सोच रखा था । अगले दिन उसे वापस निकलना था, इसलिए वो खा – पीकर होटल के कमरे में
सो गया । सुबह वो जल्दी उठा और रैडी होकर बस स्टैंड की तरफ़ निकल पड़ा । मन में थोड़ी
उदासी का भाव लिए हुए बस में अपनी सीट पर बैठ गया और थोड़ी ही देर में बस चलने लगी
। अभी बस कुछ ही दूर तक पहुंची थी कि उसे बगल से एक कार गुज़रती दिखी । उसने कार के
अन्दर देखा तो उसे वो ही चेहरा नज़र आया जिसकी तलाश में वो कई महीनों से भटक रहा था
। उसने आव न देखा ताव, जल्दी से अपनी सीट से उठा
और बस रुकवा दी और ख़ुद भी उतर गया । और जिस तरफ़ कार जा रही थी उसी तरफ़ जल्दी से
ऑटो करके निकल पड़ा । कार आगे – आगे जा रही थी और वो ऑटो में उसके पीछे – पीछे । और थोड़ी देर बाद
कार एक घर के बाहर रुक गई, और समीर ने जो उसमे देखा वो उसके लिए झटका था ।
कार से एक लड़का उतरा उसने कार की डिग्गी खोली और उसमे
से व्हील चेयर निकाली और उसे कार के पिछले दरवाज़े को खोल कर सामने लगा दिया । उसने
अन्दर झुक कर सहारा देकर एक लड़की को बाहर
निकाला और व्हील चेयर पर उसको बिठा कर घर के अन्दर की ओर ले जाने लगा । वो लड़की
बरखा ही थी । जिसे समीर कुछ दूरी पर ऑटो में बैठा देख रहा था । ये सब देखकर उसका
दिमाग ख़राब हो गया था कि आख़िर ये हुआ क्या ? एक तो पहले ही उसके दिमाग
में सवालों की झड़ी लगी थी । अब और नए सवाल खड़े हो गए थे । वो ऑटो से उतर कर काफी
देर तक वहां खड़ा रहा । उसने तय किया कि अब वो ऑफिस नहीं जायेगा यहीं रहकर पता
करेगा कि बरखा के साथ हुआ क्या है ? ऐसी कौन सी घटना हो गई है जिसकी वजह से वो चल नहीं पा
रही है और उसे व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ रहा है । उसने आस – पास पता किया तो पता चला
कि ये लोग अभी कुछ दिन पहले ही यहाँ शिफ्ट हुए हैं । फैमिली में एक बेटी, एक बेटा, माँ – बाप और एक बूढी दादी हैं
। बेटी को ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल ले जाते हैं । उसके बाद वो वापस लौट आया और
उसने ऑफिस फ़ोन करके छुट्टी मांग ली और सोचने लगा कि किस तरह से सच्चाई का पता
लगाया जाए ।
अगले दिन समीर बरखा के घर पास जाकर खड़ा हो गया, कुछ वक़्त के बाद जब गाड़ी
बरखा को लेकर निकली तो वो भी ऑटो से पीछे लग गया । लगभग बीस मिनट के बाद गाड़ी एक
अस्पताल के सामने रुकी और बरखा को अन्दर ले जाया गया । समीर भी उसके पीछे लगा रहा
और ये पता करने लगा कि उसे हुआ क्या है ? और जो हुआ था वो उसके लिए किसी अफ़सोस से कम नहीं था ।
पूछने पर उसे पता चला कि कुछ महीने पहले वो किसी से मिलने गई थी और बस स्टैंड के
पास किसी से फ़ोन पर बात करते वक़्त एक गाड़ी ने टक्कर मार दी थी, जिसकी वजह से उसके पैरों
ने काम करना बंद कर दिया था । उसे वहां अस्पताल ले जाया गया था कुछ दिन इलाज भी
हुआ था, बाद में उसके घर वाले उसे
यहाँ ले आए और अब यहाँ ट्रीटमेंट चल रहा है । डॉ. कहते हैं कि ट्रीटमेंट चलेगा और
वो फिर से चलने लगेगी लेकिन कब तक....... ? ये कहना बहुत मुश्किल है
।
समीर को अब ये समझने में ज़रा भी देर नहीं लगी कि उस
रात बरखा उसे ही फ़ोन कर रही थी, और बात होती इसके पहले उसका एक्सीडेंट हो गया था ।
उसने तय किया कि अब वो बरखा के घर जाकर उससे ज़रुर मिलेगा । उससे बात करेगा, उससे पूछेगा कि इतना सब
हो गया फिर भी उसने उसे कुछ बताया क्यों नहीं ? आख़िर क्यों उसने ये सारी
बातें छिपा कर रखीं ? वो अस्पताल से वापस आ
गया और होटल के कमरे में सो गया । शाम साढ़े चार बजे के करीब उसकी आँख खुली तो वो
उठा और नहा - धोकर तैयार हो गया । होटल से बाहर निकल कर उसने ऑटो किया और थोड़ी देर
में वो बरखा के घर के पास पहुँच गया । उसका दिल बहुत तेज़ धड़क रहा था और मन में
बहुत से सवाल उमड़ रहे थे और साथ ही साथ आज एक ज़माने बाद बरखा से मिलने की ख़ुशी भी
हो रही थी । उसने घर के बाहर लगी बेल बजायी तो वो ही लड़का बाहर आया जो बरखा को
अस्पताल लेकर गया था । उसने पूछा, “जी कहिये.... किससे मिलना है ?” समीर ने कहा, “जी मेरा नाम समीर है....
और मुझे बरखा जी से मिलना है, मैं उनका दोस्त हूँ, उनकी तबियत ठीक नहीं है
तो हाल - चाल लेने आया हूँ ।”
लड़के ने कहा, “ठीक है... अन्दर आइये, मैं उसका कज़िन हूँ ।” समीर तेज़ी से धड़कते दिल
के साथ अन्दर दाखिल हुआ । उसने देखा कि सामने सोफ़े पर बरखा टाँगे सीधी किए बैठी
हुई है और टीवी पर कोई फिल्म देख रही है । कज़िन ने बरखा को आवाज़ देते हुए कहा, “बरखा...... देखो तुमसे
कोई मिलने आया है ।” बरखा ने देखा...... कि
सामने समीर खड़ा है । उसे देखते ही बरखा एकदम चौंक सी गई, जैसे उसने कोई आश्चर्यजनक
चीज़ देख ली हो । फिर भी वो ख़ुद को सँभालते हुए बोली, “समीर....... तुम यहाँ ? कब आए ? और मेरे घर तक कैसे
पहुँच गए ? तुम्हें तो मेरे बारे में
कुछ भी नहीं पता था ? यहाँ तक कि मैंने
तुम्हें अपना फ़ोन नंबर भी नहीं दिया था ।” समीर ने कहा, “मैं तुम्हें सब बताता हूँ
लेकिन पहले ये बताओ तुम कैसी हो ? ये सब कैसे हो गया और तुमने मुझे फ़ोन भी नहीं किया ।” बरखा ने अपने कज़िन से कहा कुछ चाय - नाश्ता ले
आओ । सुनते ही वो चला गया ।
उसके जाने के बाद बरखा ने उससे कहा, “देख सकते हो कैसी हूँ ? तुम्हारे सामने हूँ । और
ये सब क्या है वो बताती हूँ.... उसने कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद कहा, जिस शाम मैं तुमसे मिली
थी और जब तुम वहाँ से चले गए थे तो थोड़ी देर बाद दो लोग आए और मुझसे बद्तमीज़ी करने
लगे, परेशान करने लगे.... तो
मुझे लगा कि मैंने तुम्हें भेज कर ग़लत कर दिया है, इसलिए मैं बाहर आकर
तुम्हें कॉल करके बुलाना चाहती थी । और मैंने तुम्हारा डायल ही किया था कि एक कार
ने टक्कर मार दी और मैं गिर पड़ी । उसके बाद मुझे याद ही नहीं कि क्या हुआ ? जब कुछ घंटों बाद मुझे
होश आया तो ख़ुद को हॉस्पिटल में पाया । लेकिन मेरे पास मेरा मोबाइल नहीं था इसलिए
मैं तुम्हें कॉल भी नहीं कर पाई । लेकिन मुझे तुम्हारा नंबर याद हो गया था तो बाद
में मैंने किसी और के मोबाइल से तुम्हें कॉल किया फिर काट भी दिया क्यूंकि पता
नहीं क्या हुआ था ? मेरी तुमसे बात कर पाने
की हिम्मत नहीं हो रही थी । फिर मैं यहाँ आ गई । मैंने तुम्हें बहुत बार कॉल किया
और तुम्हारी आवाज़ सुनकर फ़ोन काट देती थी । बस तुमसे कुछ भी कह पाने की मैं हिम्मत
नहीं कर पा रही थी । न जाने क्या वजह रही कि चाहकर भी तुमसे न कुछ कह पा रही थी और
न ही तुम्हें बता पा रही थी ।
समीर ने उसे टोकते हुए कहा, “अच्छा अब ये भी बता दो कि
वहाँ मिलने किससे आई थी ?” बरखा ने उसे बताया, “मैं किसी से प्यार करती
थी, वो भी उसी शहर में जॉब
करते हैं, हमारी दोस्ती चैटिंग के
ज़रिये हुई थी, मैंने उनसे कभी मिली नहीं
थी, बस फ़ोटो में देखा था ।
इसलिए उनसे मिलने का बहुत मन था, ज़िद्द की मिलने की और पहुँच गई मिलने, बिना कुछ सोचे समझे । वो
मुझसे मिलने नहीं आए, बस उनका एक मैसेज आया, “बरखा! मैं पहले से मैरिड
हूँ, तुम्हें धोखा नहीं देना
चाहता हूँ, इसलिए तुमसे मिल नहीं
सकता, तुम वापस चली जाओ, और मुझे माफ़ कर दो ।” बस फिर उसके बाद हमारी
कभी बात नहीं हुई, मेरी ज़िद्द और बेवकूफ़ी
का नतीजा ये निकला कि मैंने अपनी टाँगे ख़राब कर ली।” अब तो सारी ज़िन्दगी यूँही
गुज़रेगी । समीर बोला, “तुम्हारे साथ इतना सब कुछ
हो गया और तुमने मुझे कुछ बताया भी नहीं ।” बरखा हँसते हुए बोली, “अच्छा बाबा! माफ़ कर
दो.... ग़लती हो गई ।” तब तक बरखा का कज़िन आ गया
फिर तीनों ने नाश्ता किया । उसके बाद समीर बोला, “अच्छा बरखा अभी तो मैं
चलता हूँ, कल फिर आता हूँ तुमसे
मिलने, अभी मुझे कुछ काम है, तब तक अपना ध्यान रखना ।” बरखा बोली, “ठीक है, ज़रूर आना, मुझे तुमसे बहुत बातें
करनी हैं ।”
समीर होटल के कमरे में आकर लेट गया, और खिड़की से बाहर देखने
लगा, उसके दिमाग में सैकड़ो
सवाल उमड़ रहे थे, तरह – तरह के विचार आ रहे थे ।
उसने उस धुंधली शाम से लेकर आज तक की बहुत सारी बातों को याद किया । उसने सोचा कि
वो जबसे बरखा से मिला है, न जाने क्यों उससे जुड़ सा गया है । जबकि उससे मिलने
से पहले उसे किसी की फिक्र नहीं थी । आज वो यहाँ किसलिए है.... ? बरखा के लिए..... ? या कोई और बात है.... ? कहीं ऐसा तो नहीं कि
उसके मन में बरखा के लिए प्यार आ गया हो...... ? या वो सिर्फ उस एक धुंधली
की दोस्ती की वजह से यहाँ है ? बरखा ने भी तो उसे बहुत बार फ़ोन किया है..... बात
नहीं की तो क्या हुआ... ? पर भूली भी तो नहीं उसे...... ? उसके भी मन में मेरे लिए
कुछ न कुछ होगा...... क्या वो उससे सिर्फ मिलकर चला जाएगा ? क्या वो बरखा को अकेला
छोड़ कर चला जाएगा ? नहीं... उसे बरखा को ऐसे
हाल में नहीं छोड़ना चाहिए । वो क्या सोचेगी ? मुझे भी तो अच्छा नहीं
लगेगा वहाँ पर ? मन यहीं लगा रहेगा ।
चिंता लगी रहेगी बरखा की.... मैं बरखा को ऐसे हाल में अकेला नहीं छोड़ सकता.....
उसके पैर ख़राब हो गए हैं, उसे मेरी ज़रूरत है । मैं कल जाकर बरखा से बात करूँगा, उससे अपने दिल के हाल
बताऊंगा, फिर जो भी होगा वो देखा
जायेगा । ऐसे सोचते – सोचते पूरी शाम गुज़र गई
और वो सो गया जाकर ।
अगले दिन वो रैडी होकर बरखा के घर पहुँच गया, उसको देखकर बरखा बड़ी ख़ुश
हुई और उसे बैठने को बोलकर तुरंत अपने कज़िन से खाने – पीने का इंतजाम करने को
कहा । बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों दुनियाँ जहान की बातें करने लगे । अचानक
ही बरखा समीर से बोली, “तुम कुछ परेशान सा लग रहे
हो, कोई परेशानी है क्या
तुम्हें ?” समीर ने कहा, “मेरे मन में बहुत सारी
बातें हैं जो तुमसे कहना चाहता हूँ, पर समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे कहूँ....?” बरखा बोली, “जो कहना है वो बेझिझक कहो
।” समीर ने कहना शुरू किया, “बरखा, मैं न जाने क्यूँ ख़ुद को
तुमसे जुड़ा हुआ महसूस करने लगा हूँ । जब तुमसे पहली बार मिला था, तब से आज तक मुझे
तुम्हारे ख़याल आते हैं, यहाँ से आने से पहले मैं हर दिन तुम्हारे बारे में
सोचता रहता था, उस शाम को याद करता था, जब तुम पहली बार मुझसे
मिली थी, अब तुमसे मिलने के बाद
वापस जाने का मन नहीं हो रहा है, दिल कर रहा है, यहीं तुम्हारे पास रुक
जाऊं, तुम्हारी देख - भाल करूँ
। नहीं समीर यहाँ सब लोग हैं मेरी देख - भाल करने के लिए, बरखा उसे टोकते हुए बोली
। तुम परेशान मत हो, वापस जाओ और अपना काम -
काज देखो जाकर । मैं जब ठीक हो जाउंगी तो तुमसे मिलने आउंगी । वैसे भी यहाँ रहोगे
तो परेशान होगे । तुम वापस चले जाओ मैं अपना पूरा ख़याल रखूंगी ।
समीर बोला, “तुम चाहे जो कहो बरखा पर
मेरा दिल नहीं हो रहा तुमसे अलग होने का । मैं तुमसे अलग नहीं रह सकता हूँ । मैं
तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ हमेशा, तुम्हारा साथ देना चाहता हूँ ।” बरखा बोली, “समीर ऐसा कैसे हो सकता है, हम सिर्फ दोस्त हैं और
मैं किसी पर बोझ भी नहीं बनना चाहती हूँ । मेरी ज़िन्दगी ऐसे ही कटेगी तुम चले जाओ
।” समीर बोला, “एक बार तुम्हारे कहने पर
चला गया था, अब नहीं जाऊंगा ।” “तो क्या चाहते हो तुम ?” बरखा ने उससे पूछा । समीर
ने जवाब दिया, “तुमसे उम्र भर का साथ, तुम्हारे साथ ज़िन्दगी
गुज़ारना और तुम्हें अपना बनाना ।” बरखा बोली, “पर ये कैसे मुमकिन है ? मेरी हालात तो देखी है न
तुमने.... कैसे साथ दूंगी मैं तुम्हारा ? कैसे गुज़ारुंगी अपनी ज़िन्दगी इस हाल में तुम्हारे साथ
?” समीर उसकी चेयर के पास
नीचे बैठ गया और उसके घुटनों पर सर रख कर बोला, “बस ऐसे ही......” बरखा ने उसके सिर पर हाथ
रखा और कहा तुम पागल हो..... अपना इलाज कराओ..... समीर ठंडी सांस में बोला, “तुम कर दो न.........”
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