Friday, March 15, 2019

कॉलेज से उसका लौटना

प्यार बहुत था उसे मुझसे, मुझे भी उसका साथ होना अच्छा लगता था,

हर शाम को ढलते सूरज के साथ कॉलेज से उसका लौटना अच्छा लगता था,

इतवार के दिन चुपके से छत पर आकर मुझसे बतियाना अच्छा लगता था,

होली तीज दिवाली मिठाई देने के बहाने मेरे घर आना अच्छा लगता था,

प्यार बहुत था उसे मुझसे,

फ़र्क़ था आदतों में, लेकिन एक दूसरे का एहसास अच्छा लगता था,

उसे संगीत तेज़ रास आता था, मुझे रफ़ी के गाने सुकूँ देते थे,

वो लटों को सुलझाती थी, मैं लटों का गिरना देखता था,

उसे आईलाइनर पसंद था और मुझे उसका काजल,

मेरे कहने पर लाल सूट पहन कर उसका घर से निकलना अच्छा लगता था,

वो फ्रेंच टोस्ट और कैफ़े कॉफ़ी डे की कॉफ़ी पे मरती थी और मैं सड़क किनारे बिकने वाली 6 रुपये की अदरक की चाय पे.

उसे नाईट क्लब्स पसंद थे, मुझे रात की शांत सड़कें.

शांत लोग, मरे हुए लगते थे उसे, मुझे शांत रहकर उसे सुनना अच्छा लगता था,

लेखक और कवि बोरिंग लगते थे उसे, पर मुझे मिनटों देखा करतीथी, जब मैं लिखा करता था ,

वो न्यू यॉर्क के टाइम्स स्क्वायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाज़ार में शॉपिंग के सपने देखती थी,

मैं असम के चाय के बागों में खोना चाहता था, मसूरी के लाल टिब्बे में बैठकर सूरज डूबता देखना चाहता था.

उसकी बातों में महंगे शहर थे, और मेरा तो पूरा शहर ही वो,

हम दोनों का एक दूसरे की बातों में समा जाना अच्छा लगता था,

वक़्त चलता रहा अपनी रफ़्तार से, जैसे बचपन से जवानी आ गयी,

न मैंने उसे बदलना चाहा, न उसने मुझे.

अच्छा चला था इसी तरह सब.

एक अरसा हुआ, दोनों को रिश्ते से आगे बढे.

कुछ दिन पहले उसके साथ ही रहने वाली एक दोस्त से पता चला…

वो अब शांत रहने लगी है,

लिखने लगी है. मसूरी भी घूम आई, लाल टिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रही.

आधी रात को अचानक से उसका मन अब, चाय पीने का करता है.

और मैं…

मैं भी अब अकसर कॉफ़ी पी लेता हूँ, किसी महंगी जगह पर बैठकर।

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