Thursday, January 30, 2020

कभी अफ़साना बना के रोये,

कभी अफ़साना बना के रोये, 
कभी फलसफ़ा लिख के रोये,
एक मोहब्बत क्या की, 
कभी रुला के रोये 
तो कभी हंसा के रोये।
जितनी जुस्तजू करके रोये,
उतनी तिष्नगी पा के रोये, 
कभी खुद पे रोये,
कभी गैरों पे रोये,
एक मोहब्बत के खातिर,
कब्र के बाहर भी रोये,
कब्र के अंदर भी रोये।

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