अब वो ऐतबार नहीँ आते हैँ,
यारोँ के त्योहार नहीँ आते हैं
न हो-हल्ला होता है
न गप-शप के रेले छाते हैँ
न ताश खेलता है कोई
न शतरंज की बाजी लगाते हैँ
अब जलेबियों में भी वो बात कहाँ
सब मीठे से परहेज बताते हैँ
मिलना-जुलना छूट गया
फोन से दिल बहलाते हैँ
अब वो ऐतबार नहीँ आते हैँ....
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